Sri Krishna: सभी लोगों का अपने ईष्ट देवता के प्रति भक्ति व्यक्त करने का तरीका विभिन्न होता है। कुछ लोग मंदिर जाकर पूजा-अर्चना करते हैं, और कुछ घर पर ही ध्यान धारणा करके अपने ईश्वर को प्रसन्न करते हैं। सभी अपने-अपने तरीकों से प्रभु की प्रसन्नता का प्रयास करते हैं। भगवद गीता में भगवान Shri Krishna ने चार प्रकार के भक्तों का विवरण किया है।
Shri Krishna
संसार में दो प्रकार के लोग पाए जाते हैं, जिनमें से कुछ नास्तिक होते हैं और कुछ आस्तिक। जो भगवान Shri Krishna के प्रति श्रद्धा रखते हैं, उन्हें आस्तिक कहा जाता है, वहीं जो ईश्वर में आस्था नहीं रखते, उन्हें नास्तिक कहलाते हैं। भगवान के प्रति श्रद्धा रखने वालों को भक्त कहा जाता है। भगवान Shri Krishna ने भक्ति के चार प्रकार बताए हैं। आइए जानते हैं कि भक्ति के चार प्रकार कौन-कौन से हैं।
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भगवद गीता में भगवान Shri Krishna ने चार प्रकार के भक्तों का वर्णन किया है। वे इस प्रकार हैं – आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी, और ज्ञानी। भगवत गीता के इस श्लोक में 4 प्रकार के भक्तों का वर्णन प्राप्त होता है।
ये हैं चार प्रकार के भक्त
चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ।।
इस श्लोक में भगवान Shri Krishna अर्जुन से कहते हैं कि – हे अर्जुन! चार प्रकार के भक्त मेरा भजन करते हैं: आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी, और ज्ञानी। इनमें सबसे निम्न श्रेणी का भक्त अर्थार्थी होता है। उसके बाद आर्त, आर्त से श्रेष्ठ जिज्ञासु, और जिज्ञासु से भी श्रेष्ठ ज्ञानी होता है।
- ये होते हैं जिज्ञासु भक्त
जैसा कि इनके नाम से ही पता चलता है, जिज्ञासु भक्त वे होते हैं जिनमें कुछ जानने की उत्कृष्ट इच्छा होती है। वे लोग संसार में अनित्यता को देखकर ईश्वर की खोज में लगते हैं और ईश्वर की प्रेम भक्ति करते हैं। इस श्रेणी के भक्तों को भगवान Shri Krishna ने रखा है।
- केवल दुख में भगवान को याद करते हैं
आर्त भक्त वह है जो शारीरिक कष्ट आने पर या धन-वैभव नष्ट होने पर, अपना दुःख दूर करने के लिए ही भगवान को पुकारता है। अर्थात यह भक्त केवल कठिन समय में ही भगवान को याद करते हैं। ये भक्त निम्नकोटि से थोड़े श्रेष्ठ होते हैं।
- कौन होते हैं अर्थार्थी भक्त
सभी भक्तों में निम्न श्रेणी के भक्त अर्थार्थी माने जाते हैं। इस श्रेणी के भक्त वे होते हैं जो ईश्वर की प्राप्ति के लिए भोग, धन, और सुख की इच्छा से उनके पूजन करते हैं। इन व्यक्तियों के लिए भगवान के साथ भौतिक सुख की प्राप्ति महत्त्वपूर्ण होती है। इसी कारण भगवान Shri Krishna ने उन्हें सबसे निम्न श्रेणी में रखा है।
- सर्वश्रेष्ठ हैं ये भक्त
ज्ञानी भक्त वे व्यक्ति होते हैं जो किसी प्रकार की स्वार्थ की इच्छा के बिना भगवान की भक्ति में विलीन रहते हैं। ज्ञानी भक्त भगवान को छोड़कर कुछ भी नहीं चाहते हैं। इसलिए भगवान ने उन्हें अपनी आत्मा कहा है। इन भक्तों के बारे में भगवान ने स्वयं कहा है कि जो भक्तजन अनन्य भाव से मेरे चिंतन में लगे रहते हैं और मुझे पूजते हैं, उन साधकों की योगक्षेम (जो वस्तु अपने पास न हो, उसे प्राप्त करना, और जो मिल चुकी हो, उसकी रक्षा करना) की देखभाल मैं खुद करता हूं।
जिनका मन सदैव केवल परमात्मा में विलीन रहता है और उनके लिए दुनिया में कुछ भी अन्य नहीं होता, वही वास्तविक भक्त होता है। इसलिए भगवान Shri Krishna ने ज्ञानी भक्त को सबसे उत्तम दर्जा दिया है।
Disclaimer
यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है और Sanatan Pragati किसी भी तरह की मान्यता या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।
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