|| Samudra Manthan
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सनातन शास्त्रों में उल्लिखित है कि एक दिन देवता और असुर मिलकर समुद्र को मंथन करने का निर्णय लिया। मंथन के परिणामस्वरूप सोमरस (अमृत) का उत्पादन हुआ, जिससे अनन्त अमरता की प्राप्ति होने की आशा थी। परंतु मंथन के प्रक्रियासे पहले असुरों और देवताओं के बीच बड़ी उत्पीड़न और आतंक घटित हुआ। स्वर्गराज इंद्र भी चिंतित और व्याकुल हो गए। इस पर ऋषि, मुनि और देवता सभी ब्रह्मा जी के पास गए, जिन्होंने कहा कि इस समस्या का समाधान केवल भगवान विष्णु के पास है। उन्होंने सभी को भगवान विष्णु के पास जाने की सलाह दी।
Samudra Manthan : प्रेम पालक जगतरंग श्रीकृष्ण द्वारा ‘गीता’ में आपने मित्र अर्जुन से विचार किया गया कि मानव शरीर पांच महतत्वपूर्ण तत्वों और तीन प्राकृतिक गुणों से रचा गया है। वे पांच तत्व भूमि, आकाश, वायु, अग्नि, और जल हैं। उसी प्रकार, तीन प्राकृतिक गुण सत्व, रजस, और तमस हैं। ये तीनों गुण हर व्यक्ति में प्रवृत्त होते हैं, जो उनकी स्वभावप्रधानता को प्रकट करते हैं। सत्वगुण के व्यक्ति सात्विक विचारधारा के होते हैं, जैसे कि वे क्षमा, दया, कर्म, शील, और गुणवान होते हैं।
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ये व्यक्ति भगवान के मार्ग में चलते हैं। विपरीत, रजसगुण के व्यक्ति देवताओं की शरण में जाते हैं, क्योंकि उन्हें सुख-इच्छा की प्राप्ति की अधिक चाह होती है। वहीं, तमसगुण के व्यक्ति भूत-प्रेत की पूजा में लगे रहते हैं, और वे मांस और मदिरा का सेवन भी करते हैं। लेकिन क्या आपको जानकर है कि मदिरा की उत्पत्ति कब और कैसे हुई थी, और कैसे यह सोमरस से भिन्न है? आइए, इसके बारे में जानते हैं –
मदिरा की उत्पत्ति कब हुई ?
सनातन शास्त्रों में विशिष्ट है कि प्राचीन काल में असुरों के भयानक आक्रमण से तीनों लोकों में हाहाकार बढ़ गई थी। स्वर्गराज इंद्र भी चिंतित और व्याकुल हो गए थे। इस संकटमय परिस्थिति में सभी महर्षि, मुनि और देवताओं ने ब्रह्मा जी के पास उपस्थिति दी। उन्होंने कहा कि इस समस्या का समाधान केवल भगवान विष्णु के पास हो सकता है। वे सभी भगवान विष्णु के पास जाने का सुझाव दिया। यह सुनकर सभी महर्षि, मुनि और देवताएं भगवान विष्णु के पास चल दी।
देवताओं की इस याचना को सुनकर भगवान विष्णु ने कहा- ‘तुम सभी को क्षीर सागर (समुद्र) में मंथन करना चाहिए। समुद्र मंथन से अमृत की प्राप्ति होगी, और यदि तुम अमृत पीते हो, तो तुम सभी अमर हो जाओगे। इससे असुरों को आप पर प्राणियों का अधिकार नहीं होगा। हालांकि, असुर भी अमृत पीने के पात्र होते हैं, और यदि वे अमृत पीते हैं, तो उन्हें अमरता प्राप्त हो जाएगी। इसलिए तुम्हें उनकी मदद करनी चाहिए।
इसके बाद सभी देवताएं असुरों के पास गईं और उन्हें समुद्र मंथन की योजना बताई। असुर इस पर सहम गए, लेकिन उन्हें देवताओं की सलाह बहुत प्रिय आई। उन्होंने देवताओं की प्रस्तावना स्वीकार की और मंथन के लिए समुद्र में पहुँचे।
समुद्र मंथन शुरू हो गया। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप विष निकला, जिससे सभी देवताओं , प्राणियों और परमाणुओं में विचलित हो गईं। तब देवताएं भगवान शिव से आग्रह करने लगीं। भगवान शिव ने अपने आदर्शनुसार विष पिया, जिससे उनका गला नीला पड़ गया। उनके इस नीले गले के कारण उन्हें ‘नीलकंठ’ भी कहा जाता है।
इसके बाद समुद्र मंथन फिर से शुरू हुआ। इस बार कामधेनु गाय निकली। असुरों ने इसे देवताओं को सौंपने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि वे इसे कैसे पालेंगे? हालांकि, देवताओं ने कामधेनु गाय को स्वीकार किया और उसकी देखभाल करने के लिए दूधरत बना दिया।
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फिर से समुद्र मंथन शुरू हुआ और महालक्ष्मी प्रकट हुईं। इस पर असुर और देवताएं मिलकर मां लक्ष्मी की स्तुति करने लगे। समुद्र देवता ने मां लक्ष्मी को अपनी कन्या के रूप में प्रस्तुत किया और उन्हें भगवान विष्णु के बाएं किनारे पर आराध्य किया।
तब एक बार फिर से समुद्र मंथन शुरू हुआ और इस बार ऐरावत, देवताओं के आश्वासन के रूप में प्रकट हुआ। हालांकि, असुरों ने इसे देवताओं को सौंपने से इंकार कर दिया, क्योंकि इसके प्राप्त वरदानों के लिए उन्हें विश्वास नहीं था।
इसके बाद समुद्र मंथन का आखिरी चरण आया, जिसमें मदिरा प्रकट हुई। असुरों ने खुशी मनाई और मदिरा पी ली। इसके बाद कुछ समय तक असुर मदिरा के नशे में डूबे रहे। मदिरा की प्राप्ति से वे अत्यधिक प्रसन्न हुए। इसके बाद, जब नशा धीरे-धीरे उत्तर गया, तो समुद्र मंथन की प्रक्रिया फिर से आरंभ हुई। यह घटनाक्रम से मदिरा की उत्पत्ति समझने में आता है।
कैसे सोमरस से भिन्न है ?
सोमरस देवताओं की पसंदीदा पियानी है। स्वर्ग में सोमरस प्राप्त होता है। इस प्रिय शराब को सेवन करने से व्यक्ति शारीरिक रूप से मजबूत होता है। इसका उपयोग पूजाओं और यज्ञों के समय भी किया जाता था। धार्मिक शास्त्रों में यह बताया गया है कि सोमरस पीने से युवावस्था की रक्षा होती है। सोम की औषधि को पिसकर बनाए जाने वाले रस को ‘सोमरस’ कहा जाता है। सोमरस का सेवन स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है और इसका प्रियवाण पीने वाले को शारीरिक और मानसिक रूप से बल मिलता है। इसके सेवन से व्यक्ति तमोगुण से मुक्त होकर सत्त्वगुणी बनता है। इसलिए, देवताओं को जो शुद्ध और प्रामाणिक पेय पसंद है, वही सोमरस है।
समुद्र मंथन के द्वारा निकली गई कुछ मुख्य वस्तुएं निम्नलिखित हैं:
- हलाहल (क्षीरसागर में विष): देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन की प्रक्रिया के दौरान हलाहल नामक विष निकला, जिसे निगलने के लिए भगवान शिव ने प्रयुक्त किया।
- सुरभि (कामधेनु): समुद्र मंथन से सुरभि नामक गाय उत्पन्न हुई, जिसकी क्षीर से कामधेनु प्राप्त हुई।
- धन्वंतरि: भगवान धन्वंतरि, आयुर्वेद के पिता, समुद्र मंथन से प्रकट हुए, जिन्होंने अमृत कलश के साथ प्रकट होकर मनवांतर युग में आयुर्वेदिक चिकित्सा का ज्ञान दिया।
- लक्ष्मी: महालक्ष्मी, धन की देवी, समुद्र मंथन के परिणामस्वरूप प्रकट हुई, जो देवताओं की अमरता और धन की प्रतीक हैं।
- एयरावत: गजों के राजा एयरावत भी समुद्र मंथन से प्रकट हुए और देवताओं को प्राप्त हुए।
- कमधेनु: समुद्र मंथन से कामधेनु नामक गाय उत्पन्न हुई, जो वृषभ और नन्दिनी के रूप में प्रकट हुई और देवताओं को दी।
- चंद्रमा: समुद्र मंथन से चंद्रमा उत्पन्न हुआ, जिसका महत्व विभिन्न धार्मिक और ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित है।
- धनवंतरि: समुद्र मंथन के परिणामस्वरूप भगवान धनवंतरि भी प्रकट हुए, जो औषधियों के ज्ञान के प्रतीक माने जाते हैं।
- हाथी दंत: यह एक अमूल्य औषधि के रूप में निकली, जिसका प्रयोग विभिन्न चिकित्सा उपचारों में होता है।
- कमल: समुद्र मंथन से कमल फूल उत्पन्न हुआ, जिसका भगवान विष्णु के साथ गहना में प्रयोग किया जाता है।
यह सूची केवल कुछ प्रमुख वस्तुओं की है, और समुद्र मंथन से निकली गई अन्य वस्तुएं भी हैं जो विभिन्न धार्मिक और पौराणिक ग्रंथों में उल्लिखित हैं।
Disclaimer :
यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है और Sanatan Pragati किसी भी तरह की मान्यता या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लेना चाहिए।
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