Bhairav Sadhna
भैरव साधना
:- हिन्दू धर्म के ग्रंथों के अनुसार, चार युग होते हैं – सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलियुग। वर्तमान में, हम कलियुग में हैं। इस युग में धर्म की हानि होती है और असुरी शक्तियों का प्रभाव बढ़ता है। सिद्ध पुरुषों ने कलयुग की अनैतिकता को शांत करने के लिए भगवान भैरव की साधना को महत्वपूर्ण माना है। भैरव को भगवान भोलेनाथ का अवतार माना जाता है। माना जाता है कि माता दुर्गा की पूजा करने के बाद भैरव की साधना करना अत्यंत प्रभावकारी है।
सिद्धभैरव साधना से साधक की शक्तियां वृद्धि होती हैं, और इस सिद्धि को अन्य कोई छीन नहीं सकता। यह साधना हजारों वर्षों से चली आ रही है और लोगों के बीच एक अद्वितीय विश्वास का केंद्र बना हुआ है। हालांकि, भैरव की साधना गोपनीय रहती है, और इसे अपनाने वालों की संख्या भी सीमित है।
इस साधना का आचार्य-शिष्य परंपरा में पालन होता है, जिसमें गुरु अपने शिष्य को इस साधना का ज्ञान प्रदान करता है, और फिर शिष्य भी गुरु बनकर अपने शिष्य को इस राह में मार्गदर्शन करता है। इस प्रकार की शिक्षा का एक सुशिक्षित और सावधानी से अनुसरण करना महत्वपूर्ण है। किसी भी अन्य व्यक्ति द्वारा इस पथ की चर्चा करना अयोग्य माना जाता है।
काल भैरव की उत्पति
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार त्रिदेव, अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, और भगवान शंकर के बीच सर्वश्रेष्ठ के विषय में वार्ता हो रही थी। प्रत्येक देव अपने आपको सबसे महान और श्रेष्ठ बता रहा था। जब कोई भी निर्णय नहीं कर सका कि कौन सर्वश्रेष्ठ है, तो इस मामले को ऋषि-मुनियों के हवाले कर दिया गया। उन सभी ऋषि-मुनियों ने विचार-विमर्श के बाद भगवान शंकर को सर्वश्रेष्ठ माना।
इस पर ब्रह्मा जी को एक सिर क्रोधित होने लगा और उन्होंने भगवान शंकर का अपमान करना शुरू किया। इससे भगवान शंकर भी अत्यंत क्रोधित होकर रौद्र रूप में प्रकट हुए और उनका रौद्र स्वरूप ‘काल भैरव’ कहलाया। काल भैरव ने घमंड में चूर ब्रह्मदेव के जलते हुए सिर को काट दिया, जिससे उन पर ब्रह्महत्या का दोष लग गया। इस पर भगवान शिव ने उन्हें सभी तीर्थों का भ्रमण करने का सुझाव दिया। बाद में, भगवान शिव के संग काल भैरव ने सभी तीर्थों का भ्रमण किया और फिर काशी, शिव की नगरी, पहुंचे। यहां, उन्होंने ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति प्राप्त की।
काशी में रुचि पाकर काल भैरव ने वहां बसने का निर्णय लिया। वे आज भी काशी में बसे हुए हैं और भगवान शंकर के राजा बने हुए हैं, जबकि काल भैरव को काशी के कोतवाल, अर्थात् संरक्षक, बनाया गया है। काशी में आज भी काल भैरव का मंदिर है, और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो कोई भी व्यक्ति काशी के विश्वनाथ मंदिर में पूजा करता है, उसे काल भैरव का दर्शन अवश्य करना चाहिए, तभी उसकी पूजा पूर्ण होती है।
कब की जाती है भैरव साधना?
मार्गशीष कृष्ण अष्टमी के दिन, काल भैरव जयंती मनाई जाती है। कहा जाता है कि इस विशेष दिन पूरी श्रद्धा भाव से भैरव साधना की जाए तो साधक को अपनी मनोकामना पूर्ण होती है। धार्मिक कथाओं के अनुसार, मार्गशीष अष्टमी को भगवान शिव ने काल भैरव के रूप में अवतार लिया था, जिससे यह दिन भैरव के रूप में प्रमुख हो गया है।
भैरव भगवान, त्रिलोचन शिवजी के रौद्र, विकराल और प्रचण्ड स्वरूप हैं। भैरव भगवान की साधना को मन में किसी भी इच्छा के साथ करना चाहिए, क्योंकि यह सकाम साधना है। उनकी सिद्धि के लिए साधक को सभी विधियों को रात्रि में ही आचरण करना चाहिए, जिसमें काले वस्त्रों का प्रयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है। शनिवार और रविवार को इस साधना के लिए उत्तम माना गया है।
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क्यों की जाती है भैरव साधना?
भैरव भगवान के साधना के साथ, सभी तामसिक शक्तियां जुड़ी होती हैं। इनसे मन का भय दूर होता है और व्यक्ति किसी बाहरी ताकत से डरता नहीं है, बल्कि वह निडर हो जाता है। इससे उसके सभी दुख-दर्द मिट जाते हैं। भैरव भगवान की पूजा करने से मान्यता है कि अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति होती है। भैरव की पूजा करने से राहु भी शांत हो जाते हैं।
भैरव से जुड़ी दो सिद्धियां हैं – राजसिक सिद्धि और तामसिक सिद्धि। इन दोनों के लिए विभिन्न विधियां होती हैं। तामसिक सिद्धि में मंत्रों की वजह से भूत, प्रेत और पिशाच शरीर से जुड़ जाते हैं। इसलिए इसे इष्ट मंत्र के साथ साधना करना चाहिए, अन्यथा ऐसी शक्तियां शरीर को अपने प्रभाव में लेने का खतरा होता है।
कैसे खुश होते हैं भैरव भगवान?
भगवान भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है। उन्हें प्रसन्न करने के लिए प्रतिदिन उनका मंत्र जाप करना चाहिए। प्रात:काल स्नान आदि के बाद भैरव भगवान की पूजा अर्चना करनी चाहिए। उनके वाहन कुत्ते को मीठा खिलाना चाहिए। आप आटे के बने पुए भी खिला सकते हैं। भगवान भैरव को भी मिष्ठान में जलेबी, पेड़ा आदि चढ़ाया जाता है। उन्हें पान और नारियल का भोग भी लगता है। मंत्र जाप :- ॐ काल भैरवाये नमः ॐ
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काल भैरव उपासना का महत्व
कलियुग में भैरवजी की साधना त्वरित फल प्रदान करने वाली है। शास्त्रों के अनुसार, कलियुग में भैरव, हनुमान, और मां काली की पूजा सभी देवताओं की तुलना में अधिक फलकारी होती है। भैरव भगवान भक्ति में प्रिय हैं, और वे मुसीबतों में त्वरित सहायता प्रदान करते हैं। उनका साथ निरंतर पोषण और रक्षा करने का कार्य होता है।
भैरव सिर्फ शिव और पार्वती की आज्ञा पर ही कार्य करते हैं। शिव महापुराण में, ब्रह्मा और विष्णु के बीच एक संवाद के माध्यम से भैरवजी की उत्पत्ति का वर्णन है। विष्णु भगवान ने ब्रह्मा से पूछा, ‘इस ब्रह्मांड का सर्वोत्तम निर्माता कौन है?’ ब्रह्मा ने खुद को सर्वोत्तम बताया, लेकिन इससे विष्णु भगवान क्रोधित हो गए।
चर्चा बढ़ी और दोनों देवताएं वेदों के ज्ञान प्राप्त करने के लिए गईं। वेदों ने शिव को सर्वोत्तम घोषित किया, जिन्हें सर्वशक्तिमान और सभी जीवों में समाहित माना गया। इसके बाद भगवान विष्णु और ब्रह्मा का अहंकार शांत नहीं हुआ, और शिव दिव्य रूप में प्रकट होकर आएं। भैरव नामक रूप में शिवजी ने ब्रह्मा का सिर काट दिया, और इसके पश्चात्, विष्णु और ब्रह्मा को काशी में तीर्थ यात्रा के लिए प्रेरित किया। भैरव बाबा को इस घटना के बाद से हमेशा से काशी में ही निवास करते हैं।
Disclaimer :
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