Bhagwan Shiv Se Jude 7 rahasya : – भगवान शिव (Lord Shiva) हिन्दू धर्म में प्रमुख देवताओं में से एक माने जाते हैं। सनातन धर्म में उन्हें भोलेनाथ, शंकर, आदिदेव, महेश, रूद्र, नीलकंठ, गंगाधर आदि अनेक नामों से जाना जाता है। पुराणों के अनुसार, भोलेनाथ तो स्वयंभू हैं, और उनके जन्म से जुड़ी कई रहस्यमयी कहानियां प्रचलित हैं।
भगवान शंकर की उपासना करने वाले व्यक्ति को कहते हैं कि उनकी पूरी श्रद्धा के साथ उपासना करने पर भगवान शिव सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं और उन्हें अपनी कृपा से आशीर्वादित करते हैं भगवान शंकर के बारे में ऐसी कई बातें हैं जो सामान्यतः आम व्यक्तियों को पता नहीं होती। इन रहस्यों को जानकर हम उनके ध्यान में और भी भक्ति भाव से लग सकते हैं :-
Bhagwan Shiv Se Jude 7 rahasya : -
- शिव की पत्नियां : भगवान शंकर का विवाह प्रथम बार प्रजापति दक्ष की पुत्री सती से हुआ था, लेकिन जब वे यज्ञकुंड में कूदकर भस्म हो गईं, तो उन्होंने दूसरा जन्म लिया और हिमवान की पुत्री पार्वती के रूप में प्रकट हुए। पार्वती ने भगवान शिव का विवाह फिर से सम्पन्न किया।
इसके अलावा, भगवान शंकर की कई अन्य पत्नियां भी मानी जाती हैं, जैसे:
- गंगा: भगवान शिव ने गंगा देवी को अपनी जटाओं में समाहित करके माता गंगा के रूप में स्वीकार किया था।
- काली: भगवान शिव की पत्नी काली भी मानी जाती हैं, जिन्हें दशमहाविद्या का एक रूप माना जाता है।
- उमा: पार्वती को भी उमा नाम से जाना जाता है, और यह उनके सौंदर्य और सौम्य स्वभाव को दर्शाता है।
इन रूपों में भगवान शिव की पत्नियां भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रही हैं और उनके भगवान के साथ दिव्य संबंध को प्रतिष्ठित करती हैं।
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- शिव के पुत्र : भगवान शिव के साथ पार्वती से विवाह के बाद, उन्हें कार्तिकेय नामक एक पुत्र का उत्पन्न होना हुआ था। गणेश के जन्म के पीछे भगवान शिव के उबटन से बनने की पौराणिक कथा है। उन्होंने सुकेश नामक एक अनाथ बालक को भी अपने गोद में पाला था। जलंधर भगवान शिव के तेज से उत्पन्न होने वाले एक दैत्य थे।
भगवान शिव और मोहिनी के संयोग से अय्यप्पा नामक एक देवता उत्पन्न हुआ था। भूमा उनके ललाट के पसीने की बूंद से उत्पन्न होने वाले देवी थे। अंधक और खुजा नामक दो अन्य पुत्र भी थे, जिनके बारे में ज्यादा विवरण उपलब्ध नहीं है।
- शिव के शिष्य : शिव के सात प्रमुख शिष्यों को प्रारंभिक सप्तर्षि (Saptarishi) भी कहा जाता है, जिन्होंने शिव के ज्ञान को पृथ्वी पर प्रचारित किया जिससे भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव के शिष्यों के माध्यम से गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत हुई। शिव के सात प्रमुख शिष्य हैं:
- बृहस्पति (Brihaspati)
- विशालाक्ष (Vishalaksha)
- शुक्र (Shukra)
- सहस्राक्ष (Sahasraksha)
- महेन्द्र (Mahendra)
- प्राचेतस मनु (Prachetas Manu)
- भरद्वाज (Bharadwaja)
इसके अलावा, 8वें गौरशिरस मुनि (Gaurashiras Muni) भी शिव के शिष्यों में थे। कई स्थानों पर वशिष्ठ और अगस्त्य मुनि को भी शिव के शिष्यों के रूप में उल्लेख किया गया है। ये सप्तर्षि शिव के ध्यान, तपस्या, और ज्ञान के प्रतीक रूप थे जो अनेक धार्मिक और आध्यात्मिक अभियानों की उत्पत्ति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी प्रेरणा से ही धर्म और धार्मिक संस्कृतियां विकसित हुईं और लोग अध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रगति करते रहे।
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- शिव और बुद्ध : अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक के अनुसार शंकर ने बुद्ध के रूप में जन्म लिया था, यह विचार उनके बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अनुसंधान का परिणाम है। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए दावा किया है कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं – तणंकर, शणंकर और मेघंकर।
इन उपासक द्वारा व्यक्त किये गए विचार बौद्ध धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण संदर्भ हैं और यह समझने में मदद करता है कि शंकर और बुद्ध के अन्तर्गत ज्ञान के परिपेक्ष्य में समानताएं थीं। यह विचार भगवान शिव के महत्वपूर्ण संदर्भ में एक रूप से देखा जा सकता है, जिससे उनके धार्मिक महानत्व और संसारिक यात्रा का अध्ययन होता है।
- शिव और शंकर : भगवान शंकर को ‘शिव’ कहा जाता है क्योंकि उन्हें निराकार शिव के समान अद्वैत तत्त्व के साथ जोड़ा जाता है। शिवलिंग के रूप में भगवान शिव की पूजा की जाती है, जो निराकार शिव के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित होता है। कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम मानते हैं, लेकिन वास्तविकता में दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। भगवान शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है,
जिसके ध्यान में वे संसार से परे और ध्यानानंद में लीन रहते हैं। कई जगहों पर शंकर को शिवलिंग के साथ विराजमान दिखाया गया है, जो उनके निराकार स्वरूप को प्रतिष्ठित करता है। इसलिए, शिव और शंकर दो अलग-अलग सत्ताएं हैं जो भगवान के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करती हैं। महेश (नंदी) और महाकाल को माना जाता है भगवान शंकर के द्वारपालों के रूप में, जो उनके प्रतिष्ठित भक्त हैं। भगवान शंकर की पंचायत में रुद्र देवता भी सदस्य हैं, जो उनके विभिन्न रूपों और पहलुओं को प्रकट करते हैं।
- हर युग में दिए है दर्शन : भगवान शिव ने निरंतर सभी युगों में मानवों को अपने दर्शन का आशीर्वाद दिया है। सतयुग में समुद्र मंथन के समय, त्रेता युग में भगवान राम के काल, द्वापर युग की महाभारत काल, और कलिकाल में विक्रमादित्य के काल में भी शिव विभिन्न रूपों में प्रकट हुए थे। भविष्य पुराण में भी उल्लेखित है कि शिव ने राजन हर्षवर्धन को भी मरुभूमि पर अपने दर्शन दिए थे।
शिव के दर्शन लोगों के जीवन में उत्तरोत्तर प्रेरणा और शक्ति का स्रोत बने रहते हैं। उनके दिव्य तत्व और मार्गदर्शन से मनुष्य अपने अंतरंग विकास और समाज में नैतिकता और धर्म का पालन करता है। भगवान शिव की भक्ति, पूजा, और ध्यान से मनुष्य अपने जीवन को धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जा सकता है।
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- वनवासी और आदिवासियों के देवता : भारतीय संस्कृति में शिव का महत्व अत्यंत गहन है और शिवलिंग के रूप में उनकी पूजा बड़े श्रद्धा भाव से की जाती है। भारतीय धर्मग्रंथों और पुराणों में शिव देव को दानव, राक्षस, गंधर्व, यक्ष, आदिवासी, वनवासी और विभिन्न वंशों के द्वारा आराध्य बताया गया है।
विविध धार्मिक सम्प्रदायों में भी शिव देव की पूजा की जाती है और वे भारतीय जनता के आदिवासी धर्म से लेकर विभिन्न संप्रदायों जैसे शैव, द्वैत, अद्वैत, नाथ, लिंगायत, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, पाशुपत, कालदमन और महेश्वर धर्म में भी महत्वपूर्ण रूप से शामिल हैं। इसी तरह, भारतीय वंश परंपराओं में चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की ही परंपरा से जुड़े माने जाते हैं।
इन सभी रहस्यों को ध्यान में रखते हुए, हमें भगवान शिव के दिव्य और अनसुलझे स्वरूप का सम्मान करना चाहिए। उनके भक्ति और उपासना से हम सभी जीवन के उद्देश्य को समझ सकते हैं और सच्चे सुख और शांति की प्राप्ति कर सकते हैं।
Video Link :- https://youtu.be/LyhXZo1UHg8
Disclaimer :
यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है और Sanatan Pragati किसी भी तरह की मान्यता या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लेना चाहिए।
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